मैं बनारस हूँ....
मन कहता है मन करता है
कुछ बनारस के नाम लिखूँ!
इसे विद्या का मंदिर कह दूँ
या इसको तीरथ धाम लिखूँ.!!
पानी में गंगाजल हूँ
और पत्थर में मैं पारस हूँ!
इस पावन धरती पर मैं
पावन शहर बनारस हूँ!!
मैं गूगल की अडवाइस नहीं
बुजुर्गों की अनुभवी राय हूँ!!
मैं नहीं हॉट कॉफी लाते सी
मैं कुल्लहड वाली चाय हूँ.!!
मैं वैलेंटाइन का सेलिब्रेशन नहीं
करवा चौथ मनाने वाली हूँ!
मैं रोज बुके नहीं रोज डे का
मैं पूजा के फूलों की थाली हूँ!!
विद्या धन पाने वालों के लिए
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हूँ!
भक्ति में श्रद्धा रखने के लिए
मैं दुर्गाकुंड और शिवालय हूँ!!
संकट को हरने वाला
संकट मोचन का हनुमान हूँ मैं!
मर्यादा की राह बताने को
तुलसी मानस का राम हूँ मैं.!!
मैं शिव पार्वतीजी की धरती
मैं ही हूँ काशी विश्वनाथ
मै विंध्याचल का आँचल हूँ
मैं बुद्ध जैनों की सारनाथ
मैं मालवीय जी की शक्ति
मुंशी प्रेमचंद की कहानी हूँ!
मैं दोहा तुलसी दास की हूँ
मैं ही कबीर की वाणी हूँ!!
मैं हरीश चंद्र की सच्चाई
मानवता की गहराई हूँ!
मैं नहीं पॉप डिस्को म्यूज़िक
बिस्मिल्लाह की शहनाई हूँ!!
मैं दशाश्वमेध की आरती हूँ
मैं ही शामें अस्सी हूँ!
मैं कोई पेप्सी कोला नहीं
मैं रामनगर की लस्सी हूँ!!
मैं सुबह की राग भैरवी हूँ
और कल्याण थाट हूँ मैं!
मैं मोक्ष मुक्ति का द्वार भी हूँ
हाँ मणिकर्णिका घाट हूँ मैं .!!
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