कहते हैं कि किसी राज्य में एक फकीर रहा करता था। राजा का बहुत स्नेह था उसपर। इतना स्नेह कि राजा सोता भी तो फकीर उसी के कमरे में सोता था। उसे बिना खिलाए कुछ खाता नहीं था। हर संभव कोशिश करता था कि फकीर को अपना सर्वश्रेष्ठ दे।
एक दिन वे दोनो शिकार को गए और शिकार करते करते रास्ता भूल गए। काफी देर हो चली थी। दोनों भूखे थे। राजा को एक फल दिखा, उन्होंने फल को तोड़ा। बड़ी दुविधा थी। फल एक खाने वाले दो। लेकिन जैसा कि राजा को आदत थी..वो फकीर को बिना खिलाए कुछ खाता नहीं था। राजा ने फल के 6 टुकड़े किए।
पहला टुकड़ा फकीर को दिया। फकीर ने कहा "वाह ! क्या स्वादिष्ट फल है, एक और टुकड़ा हमें दीजिए !" राजा ने एक और टुकड़ा फकीर की ओर बढ़ाई। उसने पुनः फल की प्रसंशा की और एक और टुकड़ा मांगा। राजा फल के एक-एक टुकड़े देता गया। राजा सोचने लगा कि आज इस फकीर को क्या हो गया। इसे तनिक भी खयाल नहीं कि मैं भी उतना ही भूखा हूं। अब राजा के पास मात्र एक टुकड़ा बचा था। तभी फकीर ने गुहार लगाई "महाराज, बस एक फांक और दे दीजिए। राजा से रहा नहीं गया। उसने कहा कि अब तुम ज्यादती कर रहे हो। हम तुम्हें प्रेम करते हैं इसका कत्तई ये मतलब नहीं कि तुम इसका अनुचित लाभ लो। तभी फकीर ने उनके हाथ से वो टुकड़ा भी छीन लिया पर राजा ने जैसे तैसे उस टुकड़े के अपने मुंह में डाला। वो फल नहीं बल्कि कड़वा जहर की भांति था। राजा ने मुंह में डालने के तुरंत बाद उसे थूक दिया और फकीर से कहा कि क्या तुम्हें मालूम है कि ये कितना कड़वा है और तुमने मुझसे बिना इसकी शिकायत किए पांच टुकड़े खा गए।
फकीर ने कहा : "महाराज ! जिस हाथ से सैकड़ों मीठे फल खाए हों, उससे एक कड़वे फल की क्या शिकायत! मैंने तो पांच टुकड़े बस इस उम्मीद में खाए कि कहीं आप तक इसकी शिकायत न पहुंच जाए कि फल कड़वा था।"
जीवन में संतोष बहुत आवश्यक है। एक सकारात्मक जीवन वहीं जी सकता है, जिसे होने में विश्वास है। उसके पास जो है, उससे वो प्रसन्न है। किसी अज्ञात के लालसा में दुखित नहीं है। वर्तमान को पूरे लगन से जी रहा है। ऐसे लोग सौ मीठे फलों की कृतज्ञता के सामने भला एक कड़वे फल की शिकायत के बारे में कैसे सोच सकते हैं।
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