Sunday, February 27, 2022

कभी कभी सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए

 जंगल में एक गर्भवती हिरणी बच्चे को जन्म देने को थी इसलिए वो एकांत जगह की तलाश में इधर- उधर घुम रही थी,कि तभी उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी।। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिए वहां पहुंचते ही उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई..! उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को गरजने लगा और जोरों की बिजली कड़कने लगी...!


उसने अपनी दाएं ओर देखा,तो एक शिकारी तीर का निशाना उस की तरफ साध रहा था,घबराकर वह दाहिने मुड़ी,तो वहां एक भूखा शेर झपटने को तैयार बैठा था,ठीक सामने सूखी घास आग में पकड़ चुकी थी और पीछे मुड़ी तो खाई थी।।


मादा हिरणी क्या करती? वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी।। अब क्या होगा ? क्या हिरणी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ? 


क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरणी शिकारी के तीर  से बच पायेगी ?क्या मादा हिरणी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?

वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे खाई वाली नदी बह रही थी,तो अब क्या करेगी वो?


हिरणी ने अपने आप को शून्य में छोड़ कर अपने बच्चे को जन्म देने में लग गई,कुदरत का करिश्मा देखिए....बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गई उसका तीर हिरणी के पास से गुजरते,शेर की आँख में जा लगा,शेर कराहता हुआ इधर उधर भागने लगा,और शिकारी शेर को घायल ज़ानकर भाग गया.........घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी।। हिरणी ने शावक को जन्म दिया.....!


हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है,जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते।। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।।अन्तत:यश,अपयश,हार,जीत,जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए.....!

Sunday, February 20, 2022

"युवक " भगत सिंह

 ['युवक!’ शीर्षक से नीचे दिया गया भगत सिंह का यह लेख ‘साप्ताहिक मतवाला’ (वर्ष : 2, अंक सं. 36, 16 मई, 1925) में बलवन्तसिंह के नाम से छपा था। इस लेख की चर्चा ‘मतवाला’ के सम्पादकीय कर्म से जुड़े आचार्य शिवपूजन सहाय की डायरी में भी मिलती है। लेख से पूर्व यहाँ'आलोचना’ में प्रकाशित डायरी के उस अंश को भी उद्धृत किया जा रहा है।- स.]


सन्ध्या समय सम्मेलन भवन के रंगमंच पर देशभक्त की स्मृति में सभा हुई। ... भगतसिंह ने ‘मतवाला’ (कलकत्ता) में एक लेख लिखा था : जिसको सँवार-सुधार कर मैंने छापा था और उसे पुस्तक भण्डार द्वारा प्रकाशित ‘युवक साहित्य’ में संगृहीत भी मैंने ही किया था। वह लेख बलवन्तसिंह के नाम से लिखा था। क्रांतिकारी लेख प्राय: गुमनाम लिखते थे। यह रहस्य किसी को ज्ञात नहीं। वह लेख युवक-विषयक था। वह लाहौर से उन्होंने भेजा था। असली नाम की जगह ‘बलवंत सिंह’ ही छापने को लिखा था।


(आचार्य शिवपूजन सहाय की डायरी के अंश, 23 मार्च, पृष्ठ 28, आलोचना-67/वर्ष 32/अक्तूबर-दिसंबर, 1983)


युवावस्था मानव-जीवन का वसन्तकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारों बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियाँ सहस्र धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदांध मातंग की तरह निरंकुश, वर्षाकालीन शोणभद्र की तरह दुर्द्धर्ष,प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचण्ड, नवागत वसन्त की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल, ज्वालामुखी की तरह उच्छृंखल और भैरवी-संगीत की तरह मधुर युवावस्था है। उज्जवल प्रभात की शोभा, स्निग्ध सन्ध्या की छटा, शरच्चन्द्रिका की माधुरी ग्रीष्म-मध्याह्न का उत्ताप और भाद्रपदी अमावस्या के अर्द्धरात्र की भीषणता युवावस्था में निहित है। जैसे क्रांतिकारी की जेब में बमगोला, षड्यंत्री की असटी में भरा-भराया तमंचा, रण-रस-रसिक वीर के हाथ में खड्ग, वैसे ही मनुष्य की देह में युवावस्था। 16 से 25 वर्ष तक हाड़- चाम के सन्दूक में संसार-भर के हाहाकारों को समेटकर विधाता बन्द कर देता है। दस बरस तक यह झाँझरी नैया मँझधार तूफान में डगमगाती तहती है। युवावस्था देखने में तो शस्यश्यामला वसुन्धरा से भी सुन्दर है, पर इसके अन्दर भूकम्प की-सी भयंकरता भरी हुई है। इसीलिए युवावस्था में मनुष्य के लिए केवल दो ही मार्ग हैं- वह चढ़ सकता है उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर, वह गिर सकता है अध:पात के अंधेरे खन्दक में। चाहे तो त्यागी हो सकता है युवक, चाहे तो विलासी बन सकता है युवक। वह देवता बन सकता है, तो पिशाच भी बन सकता है। वही संसार को त्रस्त कर सकता है, वही संसार को अभयदान दे सकता है। संसार में युवक का ही साम्राज्य है। युवक के कीर्तिमान से संसार का इतिहास भरा पड़ा है। युवक ही रणचण्डी के ललाट की रेखा है। युवक स्वदेश की यश-दुन्दुभि का तुमुल निनाद है। युवक ही स्वदेश की विजय-वैजयंती का सुदृढ़ दण्ड है। वह महाभारत के भीष्मपर्व की पहली ललकार के समान विकराल है, प्रथम मिलन के स्फीत चुम्बन की तरह सरस है, रावण के अहंकार की तरह निर्भीक है, प्रह्लाद के सत्याग्रह की तरह दृढ़ और अटल है। अगर किसी विशाल हृदय की आवश्यकता हो, तो युवकों के हृदय टटोलो। अगर किसी आत्मत्यागी वीर की चाह हो, तो युवकों से माँगो। रसिकता उसी के बाँटे पड़ी है। भावुकता पर उसी का सिक्का है। वह छन्द शास्त्र से अनभिज्ञ होने पर भी प्रतिभाशाली कवि है। कवि भी उसी के हृदयारविन्द का मधुप है। वह रसों की परिभाषा नहीं जानता,पर वह कविता का सच्चा मर्मज्ञ है। सृष्टि की एक विषम समस्या है युवक। ईश्वरीय रचना-कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना है युवक। सन्ध्या समय वह नदी के तट पर घण्टों बैठा रहता है। क्षितिज की ओर बढ़ते जानेवाले रक्त-रश्मि सूर्यदेव को आकृष्ट नेत्रों से देखता रह जाता है। उस पार से आती हुई संगीत-लहरी के मन्द प्रवाह में तल्लीन हो जाता है। विचित्र है उसका जीवन। अद्भुत है उसका साहस। अमोघ है उसका उत्साह।


वह निश्चिन्त है, असावधान है। लगन लग गयी है, तो रात-भर जागना उसके बाएं हाथ का खेल है, जेठ की दुपहरी चैत की चांदनी है, सावन-भादों की झड़ी मंगलोत्सव की पुष्पवृष्टि है, श्मशान की निस्तब्धता, उद्यान का विहंग-कल कूजन है। वह इच्छा करे तो समाज और जाति को उद्बुद्ध कर दे, देश की लाली रख ले, राष्ट्र का मुखोज्ज्वल कर दे, बड़े-बड़े साम्राज्य उलट डाले। पतितों के उत्थान और संसार के उद्धारक सूत्र उसी के हाथ में हैं। वह इस विशाल विश्व रंगस्थल का सिद्धहस्त खिलाड़ी है।


अगर रक्त की भेंट चाहिए, तो सिवा युवक के कौन देगा ?अगर तुम बलिदान चाहते हो, तो तुम्हें युवक की ओर देखना पड़ेगा। प्रत्येक जाति के भाग्यविधाता युवक ही तो होते हैं। एक पाश्चात्य पंडित ने ठीक ही कहा है- It is an established truism that youngmen of today are the countrymen of tomorrow holding in their hands the high destinies of the land. They are the seeds that spring and bear fruit. भावार्थ यह कि आज के युवक ही कल के देश के भाग्य-निर्माता हैं। वे ही भविष्य के सफलता के बीज हैं।


संसार के इतिहासों के पन्ने खोलकर देख लो, युवक के रक्त से लिखे हुए अमर सन्देश भरे पड़े हैं। संसार की क्रांतियों और परिवर्तनों के वर्णन छाँट डालो, उनमें केवल ऐसे युवक ही मिलेंगे,जिन्हें बुद्धिमानों ने ‘पागल छोकड़े’ अथवा ‘पथभ्रष्ट’ कहा है। पर जो सिड़ी हैं, वे क्या ख़ाक समझेंगे कि स्वदेशाभिमान से उन्मत्त होकर अपनी लोथों से किले की खाइयों को पाट देनेवाले जापानी युवक किस फौलाद के टुकड़े थे। सच्चा युवक तो बिना झिझक के मृत्यु का आलिंगन करता है, चौखी संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है, तोप के मुँह पर बैठकर भी मुस्कुराता ही रहता है, बेड़ियों की झनकार पर राष्ट्रीय गान गाता है और फाँसी के तख्ते पर अट्टहासपूर्वक आरूढ़ हो जाता है।फाँसी के दिन युवक का ही वजन बढ़ता है, जेल की चक्की पर युवक ही उद्बोधन मन्त्र गाता है,कालकोठरी के अन्धकार में धँसकर ही वह स्वदेश को अन्धकार के बीच से उबारता है।


 अमेरिका के युवक दल के नेता पैट्रिक हेनरी ने अपनी ओजस्विनी वक्तृता में एक बार कहा था- Life is a dearer outside the prisonwalls, but it is immeasurably dearer within the prison-cells, where it is the price paid for the freedom’s fight. अर्थात् जेल की दीवारों से बाहर की जिन्दगी बड़ी महँगी है,पर जेल की काल कोठरियो की जिन्दगी और भी महँगी है क्योंकि वहाँ यह स्वतन्त्रता-संग्राम के मूल्य रूप में चुकाई जाती है।


जब ऐसा सजीव नेता है, तभी तो अमेरिका के युवकों में यह ज्वलन्त घोषणा करने का साहस भी है कि, “We believe that when a Government becomes a destructive of the natural right of man, it is the man’s duty to destroy that Government."अर्थात् अमेरिका के युवक विश्वास करते हैं कि जन्मसिद्ध अधिकारों को पद-दलित करने वाली सत्ता का विनाश करना मनुष्य का कर्तव्य है।


ऐ भारतीय युवक! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है। उठ, आँखें खोल, देख, प्राची-दिशा का ललाट सिन्दूर-रंजित हो उठा। अब अधिक मत सो। सोना हो तो अनंत निद्रा की गोद में जाकर सो रह। कापुरुषता के क्रोड़ में क्यों सोता है? माया-मोह-ममता का त्याग कर गरज उठ-


“Farewell Farewell My true Love

The army is on move;

And if I stayed with you Love,

A coward I shall prove.”


तेरी माता, तेरी प्रात:स्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवाहिनी, तेरी शस्यश्यामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं की एक-एक बूँद की सौगन्ध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कण्ठ से- वंदेमातरम्।

Thursday, February 10, 2022

वस्त्रो को धार्मिक मुद्दा ना बनाकर तन ढकने की आवश्यकता बनाया जाए.!

 कभी आपके ज़ेहन में सवाल आया है कि इंसान कपड़े क्यों पहनता है? आख़िर इंसान भी दूसरे जानवरों की तरह एक प्राणी ही तो है. फिर जब बाक़ी जानवर कपड़े नहीं पहनते तो आख़िर इंसान ने ऐसा करना क्यों शुरू कर दिया? इसके कई जवाब हो सकते हैं लेकिन जो प्रमुख वैज्ञानिक कारण है वह है  सर्दी और गर्मी से बचने के लिए अन्य कारणों में खूबसूरत दिखना शामिल हो सकता है परंतु धीरे धीरे व्यक्ति के वस्त्र उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग माने जाने लगे जैसे पुरुषों के वस्त्र अलग और स्त्रियों के वस्त्र अलग। इससे वस्त्रों का लैंगिक निर्धारण होने लगा। ब्राह्मण को धोती में तो क्षत्रिय को पगड़ी में दिखाया जाने लगा इससे समाज में वस्त्रों का जातिगत बटवारा हुआ , तो वही दूसरी तरफ शादीशुदा स्त्रियां साड़ी में और कुवारी सलवार सूट में रहेगी यह अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक अवधारणा बनती गई अर्थात वस्त्रों से कालांतर में वैवाहिक स्थिति का भी निर्धारण होने लगा.! इतना ही नहीं वस्त्रों का निर्धारण मौसम के आधार पर भी होने लगा अगर सर्दी हैं तो स्वेटर का उपयोग किया जाएगा और यदि गर्मी है तो टीशर्ट से काम चल जाएगा। परंतु हमारे पूर्वजों ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिन वस्तुओं को पर्यावरण और भौगोलिक कारणों से अपनाया गया वह कभी व्यक्ति की धार्मिक पहचान भी बन जाएंगे । हमे  यह समझने की आवश्यकता है कि यूरोपियन लोग कोट पहनते हैं क्योंकि वहां सर्दी अधिक होती है वहीं भारतीय लोग धोती और कुर्ता पहनते हैं क्योंकि कर्क रेखा के अधिक निकट होने से हमारे यहां गर्मी की अधिकता रहती हैं राजस्थानी लोगों ने तो इस गर्मी से बचने के लिए साफा पहनना शुरू कर दिया ताकि सिर को अत्यधिक गर्मी और लू से बचाया जा सके यह बात और है कि साफा आज शादियों का प्रतीक बनकर रह गया है! हमें यह भी याद रखना चाहिए कि किसी धर्म का कोई रंग नहीं है क्योंकि धर्म रंगों से उच्च और वह जीवन जीने का सलीका है मुसलमानों ने हरा रंग रेगिस्तान में हरियाली के अभाव में अपनाया तो हिंदुओं ने श्वेत वस्त्र गर्मी से बचने के लिए और रंगीन वस्त्र अत्यधिक मात्रा में उत्सवों त्योहारों एवं बाहरी हस्तक्षेप और सामंजस्य से अपनाया..! अगर बात करें हाल ही में मुस्लिम महिलाओं के हिजाब विवाद की तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान के रेगिस्तान की तरह मुस्लिम कौम भी अरब के रेगिस्तान से संबंध रखती है जहां पर चलने वाली रेतीली आंधियों से सिर और आंखों को बचाने के लिए केवल स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी ऊपर से नीचे ढके हुए रहते हैं यह बात और है कि स्त्री और पुरुषों के लिए क्रमशः कृष्ण और श्वेत वस्त्र निर्धारित कर दिए गए या यूं कहें यह परंपरा बन गई । अब यह सोचने वाली बात है कि जिस प्रकार से घुंघट प्रथा हिंदू धर्म का मूल तत्व ना होकर एक सामाजिक परंपरा थी उसी प्रकार से हिजाब भी अरब की भौगोलिक आवश्यकताओं के हिसाब से सही थी परंतु अब जब भारतीय परिवेश में जिस प्रकार से घुंघट प्रथा के बिना काम चल सकता है उसी प्रकार से कम से कम सार्वजनिक और सरकारी स्थलों स्कूलों और कॉलेजों में यूनिफॉर्म ड्रेस कोड लागू रहना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का व्यक्ति हो हां यदि कोई मुस्लिम महिला यह पहनना चाहे तो यह उसका व्यक्तिगत अधिकार होना चाहिए जो उसके घर तक उसी प्रकार से सीमित हो जिस प्रकार से घुंघट प्रथा सीमित है। सरकार और माननीय न्यायालय को भी इस प्रकार के मुद्दों का निपटारा उसी प्रकार से करना चाहिए जिस प्रकार से संविधान के आधार पर सबरीमाला मंदिर के प्रवेश का निर्णय लिया गया ताकि कानून और संविधान के समक्ष सभी सामान बने रहें जब हम एक पंथनिरपेक्ष देश की बात करते हैं और लोकतंत्र के हिमायती परिवेश का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें भगवा अथवा किसी भी धार्मिक पहचान बन चुके रंगो वाले वस्त्रों को शिक्षा संस्थानों में प्रवेश से रोकना होगा क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो शिक्षा का मूल उद्देश्य गर्त में चला जाएगा और शिक्षा संस्थान केवल धार्मिक और राजनीतिक क्रीड़ा स्थली बन जाएंगे। जिससे अंततः इस देश में विद्वानों की जगह विक्षिप्त पैदा होंगे और हम केवल नालंदा और तक्षशिला की कहानियां सुनाते हुए दिखाई देंगे जिनका वास्तविक जगत से कोई लेना-देना नहीं होगा.! बेहतर होगा वस्त्रो को हिंदू मुसलमान का मुद्दा ना बनाकर तन ढकने की आवश्यकता बनाया जाए.!

Tuesday, February 8, 2022

जिस हाथ से सैकड़ों मीठे फल खाएं हो,उससे एक कड़वे फल की क्या शिकायत:-

कहते हैं कि किसी राज्य में एक फकीर रहा करता था। राजा का बहुत स्नेह था उसपर। इतना स्नेह कि राजा सोता भी तो फकीर उसी के कमरे में सोता था। उसे बिना खिलाए कुछ खाता नहीं था। हर संभव कोशिश करता था कि फकीर को अपना सर्वश्रेष्ठ दे।

एक दिन वे दोनो शिकार को गए और शिकार करते करते रास्ता भूल गए। काफी देर हो चली थी। दोनों भूखे थे। राजा को एक फल दिखा, उन्होंने फल को तोड़ा। बड़ी दुविधा थी। फल एक खाने वाले दो। लेकिन जैसा कि राजा को आदत थी..वो फकीर को बिना खिलाए कुछ खाता नहीं था। राजा ने फल के  6 टुकड़े किए।

पहला टुकड़ा फकीर को दिया। फकीर ने कहा "वाह ! क्या स्वादिष्ट फल है, एक और टुकड़ा हमें दीजिए !" राजा ने एक और टुकड़ा फकीर की ओर बढ़ाई। उसने पुनः फल की प्रसंशा की और एक और टुकड़ा मांगा। राजा फल के एक-एक टुकड़े देता गया। राजा सोचने लगा कि आज इस फकीर को क्या हो गया। इसे तनिक भी खयाल नहीं कि मैं भी उतना ही भूखा हूं। अब राजा के पास मात्र एक टुकड़ा बचा था। तभी फकीर ने गुहार लगाई "महाराज, बस एक फांक और दे दीजिए। राजा से रहा नहीं गया। उसने कहा कि अब तुम ज्यादती कर रहे हो। हम तुम्हें प्रेम करते हैं इसका कत्तई ये मतलब नहीं कि तुम इसका अनुचित लाभ लो। तभी फकीर ने उनके हाथ से वो टुकड़ा भी छीन लिया पर राजा ने जैसे तैसे उस टुकड़े के अपने मुंह में डाला। वो फल नहीं बल्कि कड़वा जहर की भांति था। राजा ने मुंह में डालने के तुरंत बाद उसे थूक दिया और फकीर से कहा कि क्या तुम्हें मालूम है कि ये कितना कड़वा है और तुमने मुझसे बिना इसकी शिकायत किए पांच टुकड़े खा गए।

फकीर ने कहा : "महाराज ! जिस हाथ से सैकड़ों मीठे फल खाए हों, उससे एक कड़वे फल की क्या शिकायत! मैंने तो पांच टुकड़े बस इस उम्मीद में खाए कि कहीं आप तक इसकी शिकायत न पहुंच जाए कि फल कड़वा था।"

जीवन में संतोष बहुत आवश्यक है। एक सकारात्मक जीवन वहीं जी सकता है, जिसे होने में विश्वास है। उसके पास जो है, उससे वो प्रसन्न है। किसी अज्ञात के लालसा में दुखित नहीं है। वर्तमान को पूरे लगन से जी रहा है। ऐसे लोग सौ मीठे फलों की कृतज्ञता के सामने भला एक कड़वे फल की शिकायत के बारे में कैसे सोच सकते हैं।


Tuesday, February 1, 2022

पिता की कमियां

जब ज़िंदगी के वो पल जो मैं उनके साथ रहना चाहता था,उनके साथ हर सुख दुःख बतलाना चाहता था मानो वो कहीं गुम गए शायद वो कहीं खो गए! आज जब भी कोई भी तकलीफ़ आती है या कोई ख़ुशी होती तो दिल करता है कि वो मेरे साथ हो, मेरे साथ सामने खड़े हो,और जोर से गले लगा कर कहे कि हम है न सब ठीक हो जाएगा। चाहें कितने भी लोग आपके आसपास प्यार जताने वाले हो, लेकिन एक पिता की कमियों को कोई भी पूरा नहीं कर सकता है.!