सच में निराले थे "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला"
एक बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी इलाहाबाद आए हुए थे। इलाहाबाद के दारागंज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर पर स्वागत समारोह एवं चाय नाश्ता का प्रबंध किया गया था। जब निराला को पंडित नेहरू के आने की सूचना मिली, तब वे चाय पीने जा रहे थे। उनके हाथ में चाय का कुल्हड़ था, वे कुल्हड़ को हाथ में लिए हुए ही चल पड़े, स्वागत समारोह स्थल उन महाशय की कोठी की ओर नेहरू से मिलने वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने महाकवि को नहीं पहचाना इसलिए वे उन्हें अंदर नहीं जाने दे रहे थे।
बस फिर क्या था निराला आग बबूला हो गए और बोले कि होंगे तो होंगे तुम्हारे प्रधानमंत्री, मेरे लिए तो वे आज भी जवाहरलाल नेहरू ही है। यह कहते हुए वे कोठी की सीढ़ी से नीचे उतर चुके थे, अंदर बैठे कुछ लोगों ने यह सारी बातें सुन ली थी, वे लोग दौड़े-दौड़े बाहर आए और निराला को मानते हुए बोले माफ़ी चाहते है हमलोग सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोग आपको नहीं पहचान सकें, 'चलिए आप पंडित नेहरू जी से मिल लीजिए' पर कवि पर तो क्रोध सवार होता था तो फिर वे किसी के मानने से भला कब मानने वाले थे, और वे नेहरू से बिना मिले ही लौट आए।
बाद में जब यह पूरी बात नेहरू को पता लगी तो जब वे अगली बार इलाहाबाद के दौरे पर आए तो उन्होंने ख़ुद अपने सेक्रेटरी को बोलकर निराला के पास कार भेजी और संदेश भिजवाया की प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहते हैं। मगर निराला जी ने उनसे मिलने से साफ मना कर दिया और कहा कि कह देना "अपने प्रिय प्रधानमंत्री से की महाकवि निराला प्रधानमंत्री से नहीं मिलना चाहता", और कार जैसे आई थी वैसे ही खाली ले जाओ।
इतना ही नहीं एक जब हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी इलाहाबाद आए तो उन्होंने भी निराला से मिलने के लिए उनके पास कार भेजवाई थीं तो उस समय भी निराला ने राष्ट्रपति से मिलने से मना कर दिया था, तो कुछ ऐसा ही था महाप्राण निराला का स्वाभिमान..!