Tuesday, March 29, 2022

सच में निराले थे "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला"

 सच में निराले थे "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला"


एक बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी इलाहाबाद आए हुए थे। इलाहाबाद के दारागंज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर पर स्वागत समारोह एवं चाय नाश्ता का प्रबंध किया गया था। जब निराला को पंडित नेहरू के आने की सूचना मिली, तब वे चाय पीने जा रहे थे। उनके हाथ में चाय का कुल्हड़ था, वे कुल्हड़ को हाथ में लिए हुए ही चल पड़े, स्वागत समारोह स्थल उन महाशय की कोठी की ओर नेहरू से मिलने वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने महाकवि को नहीं पहचाना इसलिए वे उन्हें अंदर नहीं जाने दे रहे थे। 


बस फिर क्या था निराला आग बबूला हो गए और बोले कि होंगे तो होंगे तुम्हारे प्रधानमंत्री, मेरे लिए तो वे आज भी जवाहरलाल नेहरू ही है। यह कहते हुए वे कोठी की सीढ़ी से नीचे उतर चुके थे, अंदर बैठे कुछ लोगों ने यह सारी बातें सुन ली थी, वे लोग दौड़े-दौड़े बाहर आए और निराला को मानते हुए बोले माफ़ी चाहते है हमलोग सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोग आपको नहीं पहचान सकें, 'चलिए आप पंडित नेहरू जी से मिल लीजिए' पर कवि पर तो क्रोध सवार होता था तो फिर वे किसी के मानने से भला कब मानने वाले थे, और वे नेहरू से बिना मिले ही लौट आए। 

बाद में जब यह पूरी बात नेहरू को पता लगी तो जब वे अगली बार इलाहाबाद के दौरे पर आए तो उन्होंने ख़ुद अपने सेक्रेटरी को बोलकर निराला के पास कार भेजी और संदेश भिजवाया की प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहते हैं। मगर निराला जी ने उनसे मिलने से साफ मना कर दिया और कहा कि कह देना "अपने प्रिय प्रधानमंत्री से की महाकवि निराला प्रधानमंत्री से नहीं मिलना चाहता", और कार जैसे आई थी वैसे ही खाली ले जाओ। 

इतना ही नहीं एक जब हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी इलाहाबाद आए तो उन्होंने भी निराला से मिलने के लिए उनके पास कार भेजवाई थीं तो उस समय भी निराला ने राष्ट्रपति से मिलने से मना कर दिया था, तो कुछ ऐसा ही था महाप्राण निराला का स्वाभिमान..!

Saturday, March 26, 2022

राजनीति के चक्कर में आपसी संबंध बर्बाद न करें.!

राजनीति के चक्कर में आपसी संबंध बर्बाद न करे। अगर कोई आपका साथी आपसे अलग विचारधारा रखता तो इसका ये मतलब नही है की वो विद्रोही है। जब किसी को खून की जरूरत होती है तो शायद किसी पार्टी के नेता ख़ून देने जाता हो लेकिन आपका दोस्त जरूर जाएगा।जो की आपके लिए ख़ून क्या जान भी दे सकता है,उससे राजनीतिक बात पर ज्यादा बहस न करे। कही ऐसा न हो की आप तर्क तो जीत जाए और वो संबंध हार जाए।

Friday, March 11, 2022

धर्म सुदामा जैसे निःस्वार्थ तपस्वियों के त्याग की शक्ति से जीवन पाता है।

 कृष्ण सुदामा से बार-बार कहते रहे कि कुछ मांगो मित्र, पर सुदामा ने बड़ी शालीनता से उनके हर अनुरोध को ठुकरा दिया। तीन मुट्ठी तन्दुल ले कर गए दरिद्र सुदामा जब द्वारिकाधीश से बिना कुछ लिए लौट गए तो रुक्मिणी ने कहा, "प्रभु! ये तो सबकुछ ठुकरा कर चले गए। अब क्या होगा?"

    भगवान बोले, "जानती हो देवी! व्यक्ति यदि अपने अंदर के लोभ को मार दे तो वह ईश्वर से भी पराजित नहीं होता। सुदामा को इस संसार में किसी चीज का लोभ ही नहीं है, वह तो केवल अपनी पत्नी के कहने पर आ गया है। उसे न अपने मित्र कृष्ण से कुछ चाहिए, न भगवान कृष्ण से। मैं जानता था कि यह मुझसे कुछ नहीं लेगा।"

    "पर प्रभु! सुदामा जी के परिवार की दशा तो देख रहे हैं न आप? ये कुछ मांगे न मांगे, पर उनके दुख को दूर करना आपका कर्तव्य है।"

    कृष्ण मुस्कुराए। कहा, "तुम नहीं जानती इस सुदामा को! सारा संसार जिस कृष्ण को भगवान कहता है, विडम्बना देखो कि वह चाह कर भी इस विपन्न ब्राह्मण को कुछ दे नहीं पायेगा। इसके घर पहुँचने से पहले मैं इसकी झोपड़ी को महल बना कर उसे मोतियों से भर दूंगा, पर यह उसे भी क्रूरता पूर्वक ठुकरा देगा। यह मेरे द्वारा दिये गए धन को तिनके से भी नहीं छुएगा। तभी तो इस विशाल संसार मे कृष्ण को अपना मित्र बता सकने का अधिकार समय ने केवल इसे ही दिया है। इस समय संसार में केवल हमीं दो लोग हैं जिन्होंने किसी से कुछ नहीं लिया। कुछ भी नहीं।"

      यह कैसी बात हुई प्रभु? क्या सुदामा जी अपने परिवार की दरिद्रता दूर करने का प्रयत्न नहीं करेंगे?

      कृष्ण खिलखिला उठे। बोले, " इस कृष्ण को संसार मे सुदामा से अधिक कोई नहीं जानता देवी। वह जानता है कि द्वारिका पहुँच जाने से ही उसका कार्य सम्पन्न हो गया है, मैं अब उसके परिवार का हर दुख दूर कर दूंगा। बस वह अपने मुख से कुछ नहीं मांगेगा, न स्वयं मेरा सहयोग स्वीकार करेगा।

       रुक्मिणी कृष्ण को आश्चर्य से देखती रह गईं। कृष्ण बोले, "ऐसे भक्तों की भक्ति करने का मन होता है जो अपने आराध्य से भी कुछ न लेना चाहते हों। अपनी छोटी छोटी इच्छाओं के लिए ईश्वर को पुकारने वाले मनुष्य न धर्म के सगे होते हैं न सभ्यता के। धर्म सुदामा जैसे निःस्वार्थ तपस्वियों के त्याग की शक्ति से जीवन पाता है। यह तो इसका प्रेम था जो मुझतक पैदल चला आया, नहीं तो सुदामा जैसे त्यागी ब्राह्मण जब पुकार दें, ईश्वर स्वयं उनकी चौकठ तक पहुँच जाएंगे।

रुक्मिणी ने कृष्ण को प्रणाम कर के कहा, "धन्य हैं आप! जैसे आप, वैसे ही आपके मित्र..."



मोदी से बड़ा 'मोदी' होगा, योगी के बाद जो आएगा वह योगी से बड़ा 'योगी' होगा.!

 फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास 'परती परिकथा' में एक पात्र है लुत्तो! वह उपन्यास के नायक जीतन से चिढ़ा रहता है, और हमेशा अपने मासूम(मूर्ख) समर्थकों की भीड़ लेकर जीतन को परेशान करने का प्रयास करता रहता है। एक बार जब वह हजारों की भीड़ को झूठा भय दिखा कर जीतन को मारने के लिए उकसा लाता है तो मन ही मन सोचता है- "यह भीड़ जल्दी से जल्दी जीतन को चीड़ फाड़ क्यों नहीं देती... जनता सब कुछ तहस नहस क्यों नहीं कर देती..."

    जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को जल्दी से जल्दी उखाड़ कर फेंक देने की बेचैनी में मर रहे इन टुच्चे पत्रकारों को देख कर मुझे परती परिकथा का वह धूर्त लुत्तो याद आता है। ईसाई मिशनिरिओं की छोड़ी हड्डियों पर पलने वाले ये नीच यदि पा जाएं तो शायद दांत काट कर मार दें उनको...

    पिछले वर्ष भर से बंगाल में रोज ही राजनैतिक कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं हो रही हैं, केरल में भी ऐसी हत्याएं आम हैं। पर ईसाई मिशनरियों के हाथों अपनी आत्मा बेंच चुके इन धूर्त लेखकों/पत्रकारों के लिए वह टेरर नहीं है। लेकिन कभी दंगा प्रदेश बन चुके राज्य में पिछले पाँच वर्ष में कोई भी दंगा नहीं हुआ, फिर भी इन्हें यूपी में टेरर दिख रहा है।

    मेरे एक परिचित हैं। नीतीश कुमार के शासन के पहले उनके पिताजी मीरगंज स्टेशन पर पॉकेटमारी करते थे। वे आजकल योगी आदित्यनाथ को आतंकी बताते हैं। सुबह जगने से ले कर रात को सोने के समय तक वे पानी पी पी कर मोदी योगी को कोसते हैं।

        नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ने अपने विरोधियों की जितनी घृणा झेली है, उतनी घृणा किसी राजनीतिज्ञ को नहीं मिली। सोच कर देखिये, क्या इस घृणा का कारण केवल सरकार की कमियां हैं? नहीं! कमियां तो हर सरकार में होती हैं, पर पहले ऐसी घृणा नहीं दिखी कभी। दरअसल इस घृणा का कारण है हिंदुत्व! इस घृणा का कारण है हिंदुत्व का पुनरूत्थान! ईसाई उत्कोच से पल रहे इन धूर्तों को हिन्दू और हिंदुत्व से इतनी पीड़ा है कि वे इसे रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। मोदी योगी और अमित शाह के लिए दशक भर से किया जा रहा विषवमन इसी घृणा का नतीजा है।

      पर ये धूर्त नहीं जानते कि दानवी घृणा भी देवत्व को पुष्ट करती है। इन नीच प्रपंचियो की घृणा ही योगी आदित्यनाथ के लालकिला तक पहुँचने का मार्ग प्रसस्त करेगी। राजनीति में कुछ भी पाँच वर्ष के लिए नहीं होता...

      तुम्हारी पीड़ा कभी समाप्त नहीं होगी बिके हुए लोगों। मोदी के बाद जो आएगा वह मोदी से बड़ा 'मोदी' होगा, योगी के बाद जो आएगा वह योगी से बड़ा 'योगी' होगा। युग बदल गया है।