Thursday, March 2, 2023

बिहार का कुख्यात चंपा विश्वास बलात्कार कांड:-

 वर्ष 1947 में भारत को तथाकथित स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भारत के मध्य-पूर्व के राज्य बिहार की राजनीति उसके सामंती धरातल से उभरी जिसने न केवल राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अनेक बाहुबलियों, भ्रष्टाचारियों एवं अपराधियों को पैदा किया एवं अन्य क्षेत्रों के अपराधियों को अपने

यहां पनाह दी।इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार समेत पूरे राष्ट्र को इस भ्रष्टाचारी एवं अपराधिक राजनैतिक परिवेश की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। यही कारण है कि एक समय आर्यावर्त की सबसे उपजाऊ बौद्धिक व सांस्कृतिक विरासत की थाती रही बिहार-भूमि आज भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार होती है।

बिहार की इस सामाजिक दुर्दशा के पीछे कोई और नहीं बल्कि स्वयं बिहारवासी ही दोषी हैं जिन्होंने अपने तुच्छ जातिगत, वर्गगत, क्षेत्रगत एवं समाजगत स्वार्थों की क्षणिक-पूर्ति के लिए अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी एवं महान राष्ट्र आर्यावर्त की बेहद संपन्न-भूमि को शेष विश्व के समक्ष अपमानित व शर्मसार करने का महापाप किया।

बिहारवासियों के इन्हीं स्वार्थपरक ग़लत निर्णयों के कारण आज से लगभग तीन दशक पहले बिहार के अपराधी एवं भ्रष्टाचारी नेता लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में राज्य में एक ऐसे ‘जंगलराज’ की वापसी हुई जिसने लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व के नंद-वंशीय निरंकुश कुशासन की भयावह कुस्मृतियाँ ताज़ा कर दीं। हो सकता है कि आज की नई पीढ़ी को तीन दशक पहले बिहार में हुए उस भयावह ‘नग्न जंगल-नृत्य’ के विषय में अधिक जानकारी न हो लेकिन इस लेख में संदर्भित की गई इस एक कहानी को 

पढ़कर ही उसे बिहार की तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक दुर्दशा के विषय में काफ़ी कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है-


बिहार का कुख्यात चंपा विश्वास बलात्कार कांड:-


वर्ष 1998 में बिहार में समाज कल्याण विभाग में सचिव के पद पर तैनात वर्ष 1982 बैच के सीनियर आईएएस अधिकारी बी० बी० विश्वासकी 30 वर्षीया पत्नी चंपा विश्वास ने आरोप लगाया कि तत्कालीन राजद विधायक एवं समाज कल्याण बोर्ड की चेयरमैन हेमलता यादव, जिनका कि सरकारी आवास उनके आवास के पास में ही स्थित था, के 27 वर्षीय अपराधी पुत्र मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने आपराधिक दबाव बनाकर उनके साथ दो साल से अधिक समय तक लगातार हिंसक तरीके से बलात्कार किया। चंपा विश्वास ने यह भी ख़ुलासा किया कि एक बार उनका ज़बरन गर्भपात भी कराया गया जिसके बाद गर्भ ठहरने के बचाने के लिए बलात्कारियों ने उनकी नसबंदी तक करवा दी। काफ़ी लंबे समय तक चले शारीरिक, मानसिक एवं यौन-प्रताड़नाओं के दौर से तंग आकर जब चंपा विश्वास ने इसका विरोध किया तो मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने उनको डराया-धमकाया और मुंह खोलने पर जान से मारने की धमकी भी दी परंतु तब तक चंपा विश्वास मृत्युंजय यादव और उसके साथियों के उत्पीड़न से इस क़दर परेशान आ चुकी थीं कि उन्होंने इस अपनी पीड़ा को बाहर

मीडिया में सार्वजानिक करना ही उचित समझा।इससे पहले उनके पति बी० बी० विश्वास लालू प्रसाद यादव से बलात्कारी मृत्युंजय यादव एवं उसके बाक़ी बलात्कारी साथियों की शिकायत कर चुके थे जिसके जबाब में लालू प्रसाद यादव ने उनको अपना मुंह बंद रखने की सख़्त हिदायत देते हुए बलात्कारियों के साथसमझौता करने का सुझाव दिया था। इतना ही नहीं, बलात्कारियों की सी भाषा बोलते हुए जंगलाधीश लालू प्रसाद यादव ने बी० बी० विश्वास को समझौता न करने की स्थिति में इस मामले में किसी प्रकार की कोई भी कार्यवाही न होने और उनको परिवार समेत गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी थी।

उसके बाद क्या था, जैसे ही चंपा विश्वास ने अपने साथ हुए बर्बरतापूर्ण बलात्कारों की त्रासदी को बयां करते हुए जब तत्कालीन बिहार सरकार के ‘जंगलराज’ की कलई खोलनी शुरू की तो बिहार के साथ पूरे भारत के राजनीतिक गलियारों में हडकंप मच गया। इस घटना से पूरे देश के ज़ेहन में सहसा ही वर्ष 1983 के बिहार के चर्चित ‘बॉबी सेक्स-स्कैंडल एवं हत्याकांड’ की यादें ताज़ा हो उठीं जब बिहार विधानसभा सचिवालय में टाइपिस्ट रहीं बॉबी उर्फ़ निशा त्रिवेदी की, बिहार के ही कद्दावर अपराधी एवं बलात्कारी कांग्रेसी नेताओं ने बर्बरतापूर्ण बलात्कार करने के बाद निर्मम हत्या कर दी थी।

उस केस में भी बिहार के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र एवं भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री मैमूना बेगम उर्फ़ इंदिरा गांधी ने पूर्व की भांति अपने कांग्रेसी दुश्चचरित्र का प्रदर्शन करते हुए उक्त घटना को अपने विश्वस्त प्रशासनिक कर्मचारियों की सहायता से दबवा दिया था।

इस ख़ुलासे के बाद चंपा विश्वास ने कई अन्य ख़ुलासे भी किए। चंपा विश्वास ने बताया कि सिर्फ़ उनके साथ ही बलात्कार नहीं हुआ था बल्कि उनके साथ-साथ उनकी मां, उनकी ननद, उनके पति बी० बी० विश्वास की भतीजी कल्याणी एवं उनके गृहकार्यों में मदद करने वाली उनकी दो सहायिकाओं के साथ भी आतताई जंगली भेड़िए मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने निर्दयतापूर्वक बलात्कार किया था। इतना ही नहीं, उनके मुताबिक़ तत्कालीन बिहार सरकार के संरक्षण प्राप्त बलात्कारियों ने उनकी भतीजी कल्याणी एवं उनकी दोनों सहायिकाओं को ग़ायब भी करवा दिया था। उन्होंने ये शंका भी ज़ाहिर की कि इतने लंबे समय बाद भी उनकी बरामदगी का न हो पाना ये इंगित करता है कि उनको बलात्कारियों ने मार डाला था।

चूंकि बलात्कारी मृत्युंजय यादव ने बिहार के तत्कालीन जंगली मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बायोग्राफ़ी लिखी थी, इसलिए वह उनका बेहद क़रीबी एवं प्रिय था। शायद यही कारण था कि 

चंपा विश्वास के द्वारा बलात्कार की शिकायत प्राप्त होने पर भी बिहार का शासन-प्रशासन उसके ऊपर कोई भी कार्यवाही करने से बच रहा था। इस घटना के तीन साल पहले भी बिहार पुलिस ने मृत्युंजय यादव को एक अन्य राजनेता की बेटी का यौन-शोषण करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था परंतु उस समय वहकिसी तरह क्षमा मांगकर बच निकला था। यह मामला भी बिहार पुलिस की फाइल में कहीं दब और समय के साथ मर जाता यदि चंपा विश्वास ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी को चिट्ठी लिखकर अपने और अपने परिवार के साथ हुई त्रासदी की सूचना नहीं दी होती।

जब चंपा विश्वास और उनके पति बी० बी० विश्वास ने अपने ऊपर हुए ‘जंगली-अत्याचारों’ की पूरी कहानी का संपूर्ण ब्योरा बिहार के तत्कालीन राज्यपाल को सौंपा तो उसके बाद उनकी इस शिकायत पर राज्यपाल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस मामले में उचित कार्रवाई करने का अनुरोध करते हुए लालू प्रसाद यादव के प्रिय अधिकारी रहे तत्कालीन डीजीपी (प्रशासन) मोहम्मद नियाज़ अहमद को पुलिस जांच करवाने का आदेश दिया। संभवतः यह पूरे देश में अब तक का पहला ऐसा मामला था कि जिसमें एक आईएएस अधिकारी की पत्नी एवं उसके घर के सदस्यों का उसके ही घर में यौन-शोषण हुआ था और वह उनकी रक्षा कर पाने में पूर्णतः असहाय सिद्ध हुआ था। इतना ही नहीं, इस मामले में भारत की पूरी की पूरी ब्यूरोक्रेसी भी सरकारी संरक्षण प्राप्त एक जंगली बलात्कारी के आगे एकदम निस्सहाय महसूस कर रही थी।

जब उपरोक्त मामले की शिकायत के काफ़ी दिनों बाद भी बिहार के तत्कालीन ‘जंगली-प्रशासन’ ने उक्त मामले 

में कोई महत्वपूर्ण क़दम नहीं उठाया एवं बलात्कारियों की तरफ़ से विश्वास दम्पति को जान से मारने की धमकियां मिलनी शुरू हो गईं तो उसके बाद अपने परिवार की सुरक्षा को देखते हुए आईएएस अधिकारी बी० बी० विश्वास को मजबूरी में दिल्ली पलायन करना पड़ा। उसके बाद भी बलात्कारी मृत्युंजय यादव 

ने विश्वास दम्पति के जले पर नमक छिड़कते हुए बयान दिया कि बिहार की राजनीति में ऐसे आरोप कई बार फ़ायदेमंद हो जाते हैं।

इस बलात्कार कांड ने बिहार समेत पूरे भारत के समाज की अंतरात्मा को सिरे से झकझोर कर रख दिया। लोग आश्चर्य में पड़ गए कि बिहार में जब एक आईएएस अधिकारी भी अपनी 

पत्नी की इज़्ज़त नहीं बचा पाया तो ‘बिहार के जंगलराज’ में वहां की आम जनता अपनी बहू-बेटियों की इज़्ज़त को लालू प्रसाद यादव के सरकारी बलात्कारी भेड़ियों की हवस से कैसे सुरक्षित रख पाती होगी?

भले ही इस कांड ने बिहार समेत पूरे देश को हिला कर रख दिया था पर बिहार ने इस कांड से कुछ नहीं सीखा। कुछ समय बाद ही वर्ष 1999 में बिहार में पुनः देश की आत्मा को झकझोर कर रख देने वाला ‘शिल्पी जैन-गौतम सेक्स स्कैंडल एवं हत्याकांड’ सामने आया। पूर्व की तरह इस ‘जंगल-कांड’ के तार भी ‘बिहार के जंगलराज’ के मुखिया लालू प्रसाद यादव के एक अति प्रिय नेता से जुड़े पाए गए जिसे उनके द्वारा उनकी मुख्यमंत्री पत्नी राबड़ी देवी की बादशाही के चलते मैनेज कर लिया गया।

ख़ैर ‘बिहार के जंगलराज’ की ऐसी न जाने कितनी ज्ञात-अज्ञात कहानियां हैं जिनके बारे में यदि लिखा जाए तो शायद कभी भी उनका समापन नहीं किया जा सकता है परंतु बिहारवासियों से ऐसी तो आशा की ही जा सकती है कि वे अपने पूर्व-इतिहास व अपने पूर्वजों के द्वारा की गयी भयंकर भूलों से सबक़ लेते हुए अपने एवं अपनी अगली पीढ़ियों के भविष्य को स्वयं बर्बाद नहीं करेंगे एवं वे अपने मत का सही प्रयोग करते हुए अपने लिए ‘पहले से एक बेहतर राजनीतिक परिदृश्य’ तैयार करने का प्रयास करेंगे।

बिहार का जंगलराज:- शिल्पी जैन-गौतम सिंह बलात्कार एवं हत्याकांड

 बिहार का जंगलराज:- शिल्पी जैन-गौतम सिंह बलात्कार एवं हत्याकांड…


03 जुलाई, सन 1999 को बिहार के प्रतिष्ठित व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेहद ख़ूबसूरत बेटी शिल्पी जैन एवं उनके मित्र गौतम सिंह की लाशें पटना के फ्रेज़र रोड स्थित एक क्वार्टर के गैराज से बरामद हुईं। यह क्वार्टर उस वक़्त राज्य की सत्तानशीं पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विधायक एवं बिहार के अपराधी नेता लालू प्रसाद यादव के साले साधु यादव का था। एक ओर जहां शिल्पी जैन के पिता उज्ज्वल कुमार जैन स्थानीय व्यावसायिक संस्थान कमला स्टोर के मालिक थे तो वहीं दूसरी ओर गौतम सिंह के पिता बी० एन० सिंह राजद के बड़े नेताओं के बेहद क़रीबी माने जाते थे। विदित रहे कि बी० एन० सिंह ने चारा घोटालेबाज़ लालू प्रसाद यादव के द्वारा अंजाम दिए गए चारे घोटाले का धन हवाला-सूत्रों के माध्यम से विदेशी बैंकों में जमा करवाने का कार्य किया था। व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी शिल्पी जैन पटना के विमेंस कॉलेज की छात्रा थीं और गौतम सिंह उनके बॉयफ्रेंड थे। गौतम सिंह और लालू यादव के विधायक साले साधू यादव, फ्रेज़र रोड में स्थित सिल्वर ओक रेस्टोरेंट में बिज़नेस पार्टनर्स थे।


03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह पिछले करीब 8 घंटों से लापता थे और अचानक जब उनकी 

लाशें विधायक अपराधी नेता साधु यादव के फ्लैट से मिलीं तो पूरे बिहार में हड़कंप मच गया। सियासी कनेक्शन होने के कारण देखते ही देखते यह ख़बर पूरे बिहार में आग की तरह फैल गई। मौक़े पर उपस्थित प्रत्यक्षदर्शी लोग बताते हैं कि पुलिस के गैराज तक पहुंचने से पहले ही राष्ट्रीय जनता दल के

विधायक साधु यादव के गुंडे वहां पर पहुंच गए और उन्होंने वहां जमकर हंगामा खड़ा कर दिया। सबसे ज़्यादा हैरानी तो उस वक़्त तब हुई जब उजले रंग की जिस मारुति ज़ेन में शिल्पी और गौतम की लाशें मिली थीं, उस गाड़ी को पुलिस खींचकर नहीं बल्कि ड्राइव करके ले गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक संदिग्ध कार को मौका-ए-वारदात से ड्राइव करके ले जाने की वजह से गाड़ी से काफ़ी फिंगर प्रिंट्स मिट गए थे। पुलिस जब इस मामले की जांच में जुटी तो निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही पुलिस ने दोनों मौतों को आत्महत्या बताना शुरू कर दिया।


पुलिस की थ्योरी के मुताबिक शिल्पी जैन और गौतम सिंह

की मौत कार्बन-मोनो-ऑक्साइड गैस की वजह से हुई थी लेकिन शिल्पी और गौतम के विसरा रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ कि दोनों के शरीर में लीथल एल्युमिनियम ज़हर था। इतना ही नहीं, कई लोगों ने यह भी दावा किया था कि शिल्पी के शरीर पर नोचने एवं जूतों से पीटे जाने के निशान भी मौजूद थे लेकिन पुलिस इस बात से हमेशा इनकार करती रही। उपरोक्त तथ्यों के अतिरिक्त भी इस मामले में एक और अहम तथ्य पाया गया था जिसे कि बिहार पुलिस ने बहुत ही सावधानी से छुपाने एवं हल्का करने का प्रयास किया। दरअसल शिल्पी के शरीर पर एक से ज्यादा लोगों के वीर्य के सैंपल भी पाए गए थे। शिल्पी का Vaginal Fluid, जो डीएनए टेस्ट के लिए हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में भेजा गया था, उसकी रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ था कि मौत से पहले शिल्पी के साथ एक से अधिक लोगों ने सामूहिक-बलात्कार किया था। ज़ाहिर सी बात है कि हत्या से पहले शिल्पी जैन के साथ लालू प्रसाद यादव के गुंडे एवं 

बलात्कारी साले साधु यादव और उसके गैंग के गुंडों ने सामूहिक बलात्कार किया था लेकिन बिहार पुलिस ने उन्हें बचाने के लिए इन समस्त सबूतों को झुठलाने और दबाने का कार्य किया। उस समय के एसपी सिटी यह नहीं बता पाए कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कैसे शिल्पी के शरीर पर एक से अधिक व्यक्तियों के वीर्य के मौजूद होने की पुष्टि हुई? 


उस वक़्त दबी ज़ुबान में इस बात की भी चर्चा थी कि जिस 03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशों की बरामदगी गांधी मैदान थाना के अंतर्गत जिस विधायक आवास से हुई थी, वास्तविकता में उस दिन और उस स्थान पर इन दोनों की हत्याएं नहीं की गई थीं। अन्वेषणकर्ताओं के अनुमान के मुताबिक़ इन दोनों की हत्याएं, लाशों की बरामदगी से एक दिन पहले यानी कि 02 जुलाई, सन 1999 को नगर के बालमी नामक स्थान पर की गई थीं परंतु अज्ञात कारणों से दोनों लाशों की बरामदगी, साधु यादव के फ्लैट से हुई दिखाई गई। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि इन लाशों की बरामदगी किसी और स्थान से दिखाई जानी थी अथवा लाशों को नष्ट किया जाना था परंतु संभवतः किसी के द्वारा दोनों की लाशों को साधु यादव की गैराज में देख लिए जाने के कारण ऐसा किया जाना संभव न हो सका और मजबूरी में वहीं पर लाशों की बरामदगी दिखानी पड़ गयी।


काफ़ी समय तक चली जांच के पश्चात यह मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के पास भी गया। सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की प्रक्रिया में एक बार जांचकर्ताओं ने साधु यादव से उनका डीएनए सैंपल भी मांगा ताकि शिल्पी के डीएनए से उसका मिलान किया जा सके परंतु सरकारी सिस्टम के अंदर लालू प्रसाद यादव की ज़बरदस्त पैठ के चलते संबंधित जांचकर्ता अधिकारी साधु यादव का डीएनए सैंपल प्राप्त नहीं कर सके। इसके बाद इस मामले में आगे चली जांच प्रक्रिया में आरोपियों की पहचान भी उजागर नहीं की गई थी और बाद में कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान आरोपियों को क्लीन चिट भी प्रदान कर दी गई। कुछ वर्षों के बाद शिल्पी जैन के भाई ने जब इस केस को फिर से खुलवाने और इसकी जांच करवाने के प्रयास करने शुरू किए तो उसके बाद उनका भी अपहरण हो गया।


कुल-मिलाकर इस पूरे घटनाक्रम का यह परिणाम निकला कि आज तक इस केस के पीछे के असली अपराधियों का नाम आधिकारिक रूप से प्रकाश में नहीं आ पाया और क़ानून की रोशनी में शिल्पी जैन तथा गौतम सिंह की हत्या का रहस्य अनसुलझा ही रह गया। फ़िलहाल, बिहारवासियों से ऐसी आशा की जाती है कि पूर्व में बिहार के ‘जंगलराज’ के दौरान घटी ऐसी हृदय-विदारक एवं मानवता-विरोधी घटनाओं से सबक़ लेते हुए वे भविष्य में कभी भी बिहार एवं राष्ट्र के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे एवं बिहार के राजनैतिक एवं सामाजिक परिदृश्य को अपराधियों, बलात्कारियों, गुंडों, लफंगों एवं आतंकवादियों से सदैव मुक्त रखने के लिए अपने हर-संभव प्रयास करेंगे।