Wednesday, December 27, 2023

कलयुग में साकार हो रहा है त्रेतायुग

सच बताएं आप मान लीजिएगा, त्रेतायुग में भगवान राम जब प्रकट हुए थे, तब भी शायद इतना बड़ा आयोजन न हुआ हो, जितना अब होने वाला है। जगह जगह से ऐसी ऐसी सूचनाएं आ रही हैं, जिन पर यकीन नहीं होता! देश के किसी मंदिर से कोई सामग्री आ रही है तो किसी से कुछ और! 


ऐसा कोई देश और राज्य नहीं जहां से खास सामग्री न आ रही हो। जिस जिस जगह राम के मानने वाले लोग हैं नेपाल, मारीशस, अमेरिका, इंडोनेशिया और न जाने किस किस देश से रामलला के लिए कौन कौन से उपहार आ रहे हैं ये बहुत ही अकल्पनीय है। बात हम अपने देश के आम श्रद्धालुओं की करें तो उनकी वे ही जानें! उनके दिलों में तो राम नाम पर सर्वस्व लुटाने की तमन्ना है। हम सभी को शताब्दियों बाद जो मिल रहे हैं श्रीराम।


कलयुग में साकार हो रहा है त्रेतायुग, रहा नहीं जा रहा बिन जाए, पर हम इंतजार करेंगे, करते रहेंगे देखिए मित्रों, यह शिकायत न कीजिए कि सोशल प्लेटफार्म पर राम पर बार बार क्यूं लिखा जा रहा है, यह तो लिखा जाएगा..! जैसे जैसे उद्घाटन के दिन पास आएंगे, बार बार खूब अच्छे अच्छे लेख लिखा जाएगा।


वस्तुतः राम पर वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास ने इतना लिख दिया है कि सामान्यजन का रोम रोम खिल उठा है। विश्वास नहीं हो रहा कि जो मंदिर पांच सौ सालों से नहीं बन पा रहा था, वह अब बन गया है। तो मन बार बार करता है कि चर्चा करें तो श्रीराम की करें, कलम उठाएं तो राम पर उठाएं। राम के ही गीत सुनें राम के ही नगमें गाएं .! तभी तो देखिए, पुरे देश में सर्वत्र राम चर्चा हो रही है ।


राम मंदिर पर फैसला शताब्दियों बाद आया, अब राम मंदिर निर्माण का कार्य बड़े जोर शोर से चल रहा है, मंदिर अभी उतना ही बना है कि दशकों तक तम्बू में बैठाए गए बालरूप राम को उसी स्थान पर स्थाई निवास मिले जहां त्रेता में उनका जन्म हुआ था, जहां बना उनका मंदिर 500 साल पहले तोड़ा गया था! सदियों तक अपमान का घूंट पीता देश अपने ही घर में अपनी ही अयोध्या में जिस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था, वह दिन बहुत करीब है।


फिर भी न जाने क्यों, लगता है कि ये चंद दिन जल्दी बीत जाएं और भक्तों को राम की जन्मस्थली पर माथा टेकने का अवसर मिल जाए, उस पुण्यभूमि के अनुभव और स्पर्श का अवसर मिल जाए..! अवध धन्य है, अयोध्या धन्य है, बस हमारा जन्म भी धन्य हो जाए। हम सभी भाग्यशाली हैं कि हम इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों के साक्षी बनने जा रहे हैं..! 


जय जय श्री राम!🙏



Wednesday, August 9, 2023

Dr Kalam Sahab the Great

 डीडी पोधिगई ने श्री पी एम नायर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी के साथ एक साक्षात्कार प्रसारित किया जो डॉ. कलाम सर के सचिव थे जब वह राष्ट्रपति थे। उन्होंने भावुकता से भरी आवाज में जो बातें कहीं, उन्हें मैं संक्षेप में प्रस्तुत करता हूं। श्री नायर ने "कलाम इफेक्ट" नामक पुस्तक लिखी....


डॉ. कलाम जब भी विदेश जाते थे तो उन्हें महंगे उपहार मिलते थे क्योंकि कई देशों में अपने दौरे पर आने वाले राष्ट्राध्यक्ष को उपहार देने की प्रथा है। उपहार को अस्वीकार करना राष्ट्र का अपमान और भारत के लिए शर्मिंदगी बन जाएगा। इसलिए, उन्होंने उन्हें प्राप्त किया और उनके लौटने पर, डॉ. कलाम ने उपहारों की तस्वीरें खींचने और फिर उन्हें सूचीबद्ध करके अभिलेखागार को सौंपने के लिए कहा। उसके बाद उसने कभी उनकी ओर देखा तक नहीं। राष्ट्रपति भवन छोड़ते समय उन्होंने मिले उपहारों में से एक पेंसिल भी नहीं ली।


2002 में, जिस साल डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति पद संभाली, रमज़ान का महीना जुलाई-अगस्त में आता था। राष्ट्रपति के लिए इफ्तार पार्टी की मेजबानी करना एक नियमित अभ्यास था। डॉ कलाम ने श्री नायर से पूछा कि उन्हें उन लोगों के लिए एक पार्टी की मेजबानी क्यों करनी चाहिए जो पहले से ही अच्छी तरह से खा चुके हैं और उनसे यह पता लगाने के लिए कहा कि इसकी लागत कितनी होगी। श्री नायर ने बताया कि इसकी कीमत करीब 10 लाख रुपये है। 22 लाख.डॉ कलाम ने उनसे उस राशि को भोजन, कपड़े और कंबल के रूप में कुछ चयनित अनाथालयों को दान करने के लिए कहा।  अनाथालयों का चयन राष्ट्रपति भवन की एक टीम पर छोड़ दिया गया था और इसमें डॉ. कलाम की कोई भूमिका नहीं थी।  चयन होने के बाद, डॉ कलाम ने श्री नायर को अपने कमरे के अंदर आने के लिए कहा और उन्हें 1 लाख रुपये का चेक दिया।  उन्होंने कहा कि वह अपनी निजी बचत से कुछ रकम दे रहे हैं और इसकी जानकारी किसी को नहीं दी जानी चाहिए.  मिस्टर नायर इतने हैरान हुए कि उन्होंने कहा, "सर, मैं बाहर जाऊंगा और सबको बताऊंगा। लोगों को पता होना चाहिए कि यहां एक आदमी है जिसने न केवल वह दान किया है जो उसे खर्च करना चाहिए था बल्कि वह अपना पैसा भी दे रहा है"।  यद्यपि डॉ. कलाम एक कट्टर मुस्लिम थे, लेकिन जिन वर्षों में वे राष्ट्रपति थे, उन्होंने इफ्तार पार्टियाँ नहीं आयोजित कीं।


डॉ कलाम को "यस सर" टाइप के लोग पसंद नहीं थे! एक बार जब भारत के मुख्य न्यायाधीश आये थे और किसी बात पर डॉ. कलाम ने अपने विचार व्यक्त किये और श्री नायर से पूछा, "क्या आप सहमत हैं?" श्री नायर ने कहा "नहीं सर, मैं आपसे सहमत नहीं हूँ"। मुख्य न्यायाधीश हैरान रह गए और उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। एक सिविल सेवक के लिए राष्ट्रपति से असहमत होना असंभव था और वह भी इतने खुले तौर पर।  श्री नायर ने उनसे कहा कि राष्ट्रपति बाद में उनसे पूछेंगे कि वे असहमत क्यों हैं और यदि कारण 99% तार्किक है तो वह अपना विचार बदल देंगे।

डॉ. कलाम ने अपने 50 रिश्तेदारों को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया और वे सभी राष्ट्रपति भवन में रुके।  उन्होंने उनके लिए शहर में घूमने के लिए एक बस की व्यवस्था की जिसका भुगतान उन्होंने किया। किसी सरकारी कार का इस्तेमाल नहीं किया गया! उनके रहने और खाने का सारा हिसाब डॉ. कलाम के निर्देशानुसार किया गया और बिल 2 लाख रुपये आया, जिसे उन्होंने चुका दिया। इस देश के इतिहास में ऐसा किसी ने नहीं किया.!

अब चरमोत्कर्ष की प्रतीक्षा करें, डॉ. कलाम के बड़े भाई पूरे एक सप्ताह तक उनके साथ उनके कमरे में रहे क्योंकि डॉ. कलाम चाहते थे कि उनका भाई उनके साथ रहे। जब वे चले गए तो डॉ. कलाम उस कमरे का किराया भी देना चाहते थे।  कल्पना कीजिए कि देश का राष्ट्रपति उस कमरे का किराया दे रहा है जिसमें वह रह रहा है। यह किसी भी तरह से कर्मचारियों द्वारा सहमत नहीं था, जिन्होंने सोचा था कि ईमानदारी को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है!

जब कलाम सर को कार्यकाल के अंत में राष्ट्रपति भवन छोड़ना था, तो हर स्टाफ सदस्य उनसे जाकर मिला और उन्हें सम्मान दिया। श्री नायर अकेले ही उनके पास गए क्योंकि उनकी पत्नी के पैर में फ्रैक्चर हो गया था और वह बिस्तर पर थीं। डॉ. कलाम ने पूछा कि उनकी पत्नी क्यों नहीं आईं। उन्होंने जवाब दिया कि वह एक दुर्घटना के कारण बिस्तर पर थी।  अगले दिन, श्री नायर ने अपने घर के आसपास बहुत सारे पुलिस वालों को देखा और पूछा कि क्या हुआ था। उन्होंने कहा कि भारत के राष्ट्रपति उनसे मिलने उनके घर आ रहे हैं। वह आकर अपनी पत्नी से मिले और कुछ देर बातचीत की। श्री नायर का कहना है कि किसी भी देश का राष्ट्रपति किसी सिविल सेवक के घर नहीं जायेगा और वह भी इतने साधारण बहाने से।

मैंने सोचा कि मुझे विवरण देना चाहिए क्योंकि आप में से कई लोगों ने प्रसारण नहीं देखा होगा और इसलिए यह उपयोगी हो सकता है। 

एजेपी अब्दुल कलाम के छोटे भाई छाता रिपेयरिंग की दुकान चलाते हैं। जब श्री नायर कलाम के अंतिम संस्कार के दौरान उनसे मिले, तो उन्होंने श्री नायर और भाई दोनों के सम्मान में उनके पैर छुए...!

Thursday, March 2, 2023

बिहार का कुख्यात चंपा विश्वास बलात्कार कांड:-

 वर्ष 1947 में भारत को तथाकथित स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भारत के मध्य-पूर्व के राज्य बिहार की राजनीति उसके सामंती धरातल से उभरी जिसने न केवल राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अनेक बाहुबलियों, भ्रष्टाचारियों एवं अपराधियों को पैदा किया एवं अन्य क्षेत्रों के अपराधियों को अपने

यहां पनाह दी।इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार समेत पूरे राष्ट्र को इस भ्रष्टाचारी एवं अपराधिक राजनैतिक परिवेश की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। यही कारण है कि एक समय आर्यावर्त की सबसे उपजाऊ बौद्धिक व सांस्कृतिक विरासत की थाती रही बिहार-भूमि आज भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार होती है।

बिहार की इस सामाजिक दुर्दशा के पीछे कोई और नहीं बल्कि स्वयं बिहारवासी ही दोषी हैं जिन्होंने अपने तुच्छ जातिगत, वर्गगत, क्षेत्रगत एवं समाजगत स्वार्थों की क्षणिक-पूर्ति के लिए अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी एवं महान राष्ट्र आर्यावर्त की बेहद संपन्न-भूमि को शेष विश्व के समक्ष अपमानित व शर्मसार करने का महापाप किया।

बिहारवासियों के इन्हीं स्वार्थपरक ग़लत निर्णयों के कारण आज से लगभग तीन दशक पहले बिहार के अपराधी एवं भ्रष्टाचारी नेता लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में राज्य में एक ऐसे ‘जंगलराज’ की वापसी हुई जिसने लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व के नंद-वंशीय निरंकुश कुशासन की भयावह कुस्मृतियाँ ताज़ा कर दीं। हो सकता है कि आज की नई पीढ़ी को तीन दशक पहले बिहार में हुए उस भयावह ‘नग्न जंगल-नृत्य’ के विषय में अधिक जानकारी न हो लेकिन इस लेख में संदर्भित की गई इस एक कहानी को 

पढ़कर ही उसे बिहार की तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक दुर्दशा के विषय में काफ़ी कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है-


बिहार का कुख्यात चंपा विश्वास बलात्कार कांड:-


वर्ष 1998 में बिहार में समाज कल्याण विभाग में सचिव के पद पर तैनात वर्ष 1982 बैच के सीनियर आईएएस अधिकारी बी० बी० विश्वासकी 30 वर्षीया पत्नी चंपा विश्वास ने आरोप लगाया कि तत्कालीन राजद विधायक एवं समाज कल्याण बोर्ड की चेयरमैन हेमलता यादव, जिनका कि सरकारी आवास उनके आवास के पास में ही स्थित था, के 27 वर्षीय अपराधी पुत्र मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने आपराधिक दबाव बनाकर उनके साथ दो साल से अधिक समय तक लगातार हिंसक तरीके से बलात्कार किया। चंपा विश्वास ने यह भी ख़ुलासा किया कि एक बार उनका ज़बरन गर्भपात भी कराया गया जिसके बाद गर्भ ठहरने के बचाने के लिए बलात्कारियों ने उनकी नसबंदी तक करवा दी। काफ़ी लंबे समय तक चले शारीरिक, मानसिक एवं यौन-प्रताड़नाओं के दौर से तंग आकर जब चंपा विश्वास ने इसका विरोध किया तो मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने उनको डराया-धमकाया और मुंह खोलने पर जान से मारने की धमकी भी दी परंतु तब तक चंपा विश्वास मृत्युंजय यादव और उसके साथियों के उत्पीड़न से इस क़दर परेशान आ चुकी थीं कि उन्होंने इस अपनी पीड़ा को बाहर

मीडिया में सार्वजानिक करना ही उचित समझा।इससे पहले उनके पति बी० बी० विश्वास लालू प्रसाद यादव से बलात्कारी मृत्युंजय यादव एवं उसके बाक़ी बलात्कारी साथियों की शिकायत कर चुके थे जिसके जबाब में लालू प्रसाद यादव ने उनको अपना मुंह बंद रखने की सख़्त हिदायत देते हुए बलात्कारियों के साथसमझौता करने का सुझाव दिया था। इतना ही नहीं, बलात्कारियों की सी भाषा बोलते हुए जंगलाधीश लालू प्रसाद यादव ने बी० बी० विश्वास को समझौता न करने की स्थिति में इस मामले में किसी प्रकार की कोई भी कार्यवाही न होने और उनको परिवार समेत गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी थी।

उसके बाद क्या था, जैसे ही चंपा विश्वास ने अपने साथ हुए बर्बरतापूर्ण बलात्कारों की त्रासदी को बयां करते हुए जब तत्कालीन बिहार सरकार के ‘जंगलराज’ की कलई खोलनी शुरू की तो बिहार के साथ पूरे भारत के राजनीतिक गलियारों में हडकंप मच गया। इस घटना से पूरे देश के ज़ेहन में सहसा ही वर्ष 1983 के बिहार के चर्चित ‘बॉबी सेक्स-स्कैंडल एवं हत्याकांड’ की यादें ताज़ा हो उठीं जब बिहार विधानसभा सचिवालय में टाइपिस्ट रहीं बॉबी उर्फ़ निशा त्रिवेदी की, बिहार के ही कद्दावर अपराधी एवं बलात्कारी कांग्रेसी नेताओं ने बर्बरतापूर्ण बलात्कार करने के बाद निर्मम हत्या कर दी थी।

उस केस में भी बिहार के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र एवं भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री मैमूना बेगम उर्फ़ इंदिरा गांधी ने पूर्व की भांति अपने कांग्रेसी दुश्चचरित्र का प्रदर्शन करते हुए उक्त घटना को अपने विश्वस्त प्रशासनिक कर्मचारियों की सहायता से दबवा दिया था।

इस ख़ुलासे के बाद चंपा विश्वास ने कई अन्य ख़ुलासे भी किए। चंपा विश्वास ने बताया कि सिर्फ़ उनके साथ ही बलात्कार नहीं हुआ था बल्कि उनके साथ-साथ उनकी मां, उनकी ननद, उनके पति बी० बी० विश्वास की भतीजी कल्याणी एवं उनके गृहकार्यों में मदद करने वाली उनकी दो सहायिकाओं के साथ भी आतताई जंगली भेड़िए मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने निर्दयतापूर्वक बलात्कार किया था। इतना ही नहीं, उनके मुताबिक़ तत्कालीन बिहार सरकार के संरक्षण प्राप्त बलात्कारियों ने उनकी भतीजी कल्याणी एवं उनकी दोनों सहायिकाओं को ग़ायब भी करवा दिया था। उन्होंने ये शंका भी ज़ाहिर की कि इतने लंबे समय बाद भी उनकी बरामदगी का न हो पाना ये इंगित करता है कि उनको बलात्कारियों ने मार डाला था।

चूंकि बलात्कारी मृत्युंजय यादव ने बिहार के तत्कालीन जंगली मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बायोग्राफ़ी लिखी थी, इसलिए वह उनका बेहद क़रीबी एवं प्रिय था। शायद यही कारण था कि 

चंपा विश्वास के द्वारा बलात्कार की शिकायत प्राप्त होने पर भी बिहार का शासन-प्रशासन उसके ऊपर कोई भी कार्यवाही करने से बच रहा था। इस घटना के तीन साल पहले भी बिहार पुलिस ने मृत्युंजय यादव को एक अन्य राजनेता की बेटी का यौन-शोषण करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था परंतु उस समय वहकिसी तरह क्षमा मांगकर बच निकला था। यह मामला भी बिहार पुलिस की फाइल में कहीं दब और समय के साथ मर जाता यदि चंपा विश्वास ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी को चिट्ठी लिखकर अपने और अपने परिवार के साथ हुई त्रासदी की सूचना नहीं दी होती।

जब चंपा विश्वास और उनके पति बी० बी० विश्वास ने अपने ऊपर हुए ‘जंगली-अत्याचारों’ की पूरी कहानी का संपूर्ण ब्योरा बिहार के तत्कालीन राज्यपाल को सौंपा तो उसके बाद उनकी इस शिकायत पर राज्यपाल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस मामले में उचित कार्रवाई करने का अनुरोध करते हुए लालू प्रसाद यादव के प्रिय अधिकारी रहे तत्कालीन डीजीपी (प्रशासन) मोहम्मद नियाज़ अहमद को पुलिस जांच करवाने का आदेश दिया। संभवतः यह पूरे देश में अब तक का पहला ऐसा मामला था कि जिसमें एक आईएएस अधिकारी की पत्नी एवं उसके घर के सदस्यों का उसके ही घर में यौन-शोषण हुआ था और वह उनकी रक्षा कर पाने में पूर्णतः असहाय सिद्ध हुआ था। इतना ही नहीं, इस मामले में भारत की पूरी की पूरी ब्यूरोक्रेसी भी सरकारी संरक्षण प्राप्त एक जंगली बलात्कारी के आगे एकदम निस्सहाय महसूस कर रही थी।

जब उपरोक्त मामले की शिकायत के काफ़ी दिनों बाद भी बिहार के तत्कालीन ‘जंगली-प्रशासन’ ने उक्त मामले 

में कोई महत्वपूर्ण क़दम नहीं उठाया एवं बलात्कारियों की तरफ़ से विश्वास दम्पति को जान से मारने की धमकियां मिलनी शुरू हो गईं तो उसके बाद अपने परिवार की सुरक्षा को देखते हुए आईएएस अधिकारी बी० बी० विश्वास को मजबूरी में दिल्ली पलायन करना पड़ा। उसके बाद भी बलात्कारी मृत्युंजय यादव 

ने विश्वास दम्पति के जले पर नमक छिड़कते हुए बयान दिया कि बिहार की राजनीति में ऐसे आरोप कई बार फ़ायदेमंद हो जाते हैं।

इस बलात्कार कांड ने बिहार समेत पूरे भारत के समाज की अंतरात्मा को सिरे से झकझोर कर रख दिया। लोग आश्चर्य में पड़ गए कि बिहार में जब एक आईएएस अधिकारी भी अपनी 

पत्नी की इज़्ज़त नहीं बचा पाया तो ‘बिहार के जंगलराज’ में वहां की आम जनता अपनी बहू-बेटियों की इज़्ज़त को लालू प्रसाद यादव के सरकारी बलात्कारी भेड़ियों की हवस से कैसे सुरक्षित रख पाती होगी?

भले ही इस कांड ने बिहार समेत पूरे देश को हिला कर रख दिया था पर बिहार ने इस कांड से कुछ नहीं सीखा। कुछ समय बाद ही वर्ष 1999 में बिहार में पुनः देश की आत्मा को झकझोर कर रख देने वाला ‘शिल्पी जैन-गौतम सेक्स स्कैंडल एवं हत्याकांड’ सामने आया। पूर्व की तरह इस ‘जंगल-कांड’ के तार भी ‘बिहार के जंगलराज’ के मुखिया लालू प्रसाद यादव के एक अति प्रिय नेता से जुड़े पाए गए जिसे उनके द्वारा उनकी मुख्यमंत्री पत्नी राबड़ी देवी की बादशाही के चलते मैनेज कर लिया गया।

ख़ैर ‘बिहार के जंगलराज’ की ऐसी न जाने कितनी ज्ञात-अज्ञात कहानियां हैं जिनके बारे में यदि लिखा जाए तो शायद कभी भी उनका समापन नहीं किया जा सकता है परंतु बिहारवासियों से ऐसी तो आशा की ही जा सकती है कि वे अपने पूर्व-इतिहास व अपने पूर्वजों के द्वारा की गयी भयंकर भूलों से सबक़ लेते हुए अपने एवं अपनी अगली पीढ़ियों के भविष्य को स्वयं बर्बाद नहीं करेंगे एवं वे अपने मत का सही प्रयोग करते हुए अपने लिए ‘पहले से एक बेहतर राजनीतिक परिदृश्य’ तैयार करने का प्रयास करेंगे।

बिहार का जंगलराज:- शिल्पी जैन-गौतम सिंह बलात्कार एवं हत्याकांड

 बिहार का जंगलराज:- शिल्पी जैन-गौतम सिंह बलात्कार एवं हत्याकांड…


03 जुलाई, सन 1999 को बिहार के प्रतिष्ठित व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेहद ख़ूबसूरत बेटी शिल्पी जैन एवं उनके मित्र गौतम सिंह की लाशें पटना के फ्रेज़र रोड स्थित एक क्वार्टर के गैराज से बरामद हुईं। यह क्वार्टर उस वक़्त राज्य की सत्तानशीं पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विधायक एवं बिहार के अपराधी नेता लालू प्रसाद यादव के साले साधु यादव का था। एक ओर जहां शिल्पी जैन के पिता उज्ज्वल कुमार जैन स्थानीय व्यावसायिक संस्थान कमला स्टोर के मालिक थे तो वहीं दूसरी ओर गौतम सिंह के पिता बी० एन० सिंह राजद के बड़े नेताओं के बेहद क़रीबी माने जाते थे। विदित रहे कि बी० एन० सिंह ने चारा घोटालेबाज़ लालू प्रसाद यादव के द्वारा अंजाम दिए गए चारे घोटाले का धन हवाला-सूत्रों के माध्यम से विदेशी बैंकों में जमा करवाने का कार्य किया था। व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी शिल्पी जैन पटना के विमेंस कॉलेज की छात्रा थीं और गौतम सिंह उनके बॉयफ्रेंड थे। गौतम सिंह और लालू यादव के विधायक साले साधू यादव, फ्रेज़र रोड में स्थित सिल्वर ओक रेस्टोरेंट में बिज़नेस पार्टनर्स थे।


03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह पिछले करीब 8 घंटों से लापता थे और अचानक जब उनकी 

लाशें विधायक अपराधी नेता साधु यादव के फ्लैट से मिलीं तो पूरे बिहार में हड़कंप मच गया। सियासी कनेक्शन होने के कारण देखते ही देखते यह ख़बर पूरे बिहार में आग की तरह फैल गई। मौक़े पर उपस्थित प्रत्यक्षदर्शी लोग बताते हैं कि पुलिस के गैराज तक पहुंचने से पहले ही राष्ट्रीय जनता दल के

विधायक साधु यादव के गुंडे वहां पर पहुंच गए और उन्होंने वहां जमकर हंगामा खड़ा कर दिया। सबसे ज़्यादा हैरानी तो उस वक़्त तब हुई जब उजले रंग की जिस मारुति ज़ेन में शिल्पी और गौतम की लाशें मिली थीं, उस गाड़ी को पुलिस खींचकर नहीं बल्कि ड्राइव करके ले गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक संदिग्ध कार को मौका-ए-वारदात से ड्राइव करके ले जाने की वजह से गाड़ी से काफ़ी फिंगर प्रिंट्स मिट गए थे। पुलिस जब इस मामले की जांच में जुटी तो निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही पुलिस ने दोनों मौतों को आत्महत्या बताना शुरू कर दिया।


पुलिस की थ्योरी के मुताबिक शिल्पी जैन और गौतम सिंह

की मौत कार्बन-मोनो-ऑक्साइड गैस की वजह से हुई थी लेकिन शिल्पी और गौतम के विसरा रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ कि दोनों के शरीर में लीथल एल्युमिनियम ज़हर था। इतना ही नहीं, कई लोगों ने यह भी दावा किया था कि शिल्पी के शरीर पर नोचने एवं जूतों से पीटे जाने के निशान भी मौजूद थे लेकिन पुलिस इस बात से हमेशा इनकार करती रही। उपरोक्त तथ्यों के अतिरिक्त भी इस मामले में एक और अहम तथ्य पाया गया था जिसे कि बिहार पुलिस ने बहुत ही सावधानी से छुपाने एवं हल्का करने का प्रयास किया। दरअसल शिल्पी के शरीर पर एक से ज्यादा लोगों के वीर्य के सैंपल भी पाए गए थे। शिल्पी का Vaginal Fluid, जो डीएनए टेस्ट के लिए हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में भेजा गया था, उसकी रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ था कि मौत से पहले शिल्पी के साथ एक से अधिक लोगों ने सामूहिक-बलात्कार किया था। ज़ाहिर सी बात है कि हत्या से पहले शिल्पी जैन के साथ लालू प्रसाद यादव के गुंडे एवं 

बलात्कारी साले साधु यादव और उसके गैंग के गुंडों ने सामूहिक बलात्कार किया था लेकिन बिहार पुलिस ने उन्हें बचाने के लिए इन समस्त सबूतों को झुठलाने और दबाने का कार्य किया। उस समय के एसपी सिटी यह नहीं बता पाए कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कैसे शिल्पी के शरीर पर एक से अधिक व्यक्तियों के वीर्य के मौजूद होने की पुष्टि हुई? 


उस वक़्त दबी ज़ुबान में इस बात की भी चर्चा थी कि जिस 03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशों की बरामदगी गांधी मैदान थाना के अंतर्गत जिस विधायक आवास से हुई थी, वास्तविकता में उस दिन और उस स्थान पर इन दोनों की हत्याएं नहीं की गई थीं। अन्वेषणकर्ताओं के अनुमान के मुताबिक़ इन दोनों की हत्याएं, लाशों की बरामदगी से एक दिन पहले यानी कि 02 जुलाई, सन 1999 को नगर के बालमी नामक स्थान पर की गई थीं परंतु अज्ञात कारणों से दोनों लाशों की बरामदगी, साधु यादव के फ्लैट से हुई दिखाई गई। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि इन लाशों की बरामदगी किसी और स्थान से दिखाई जानी थी अथवा लाशों को नष्ट किया जाना था परंतु संभवतः किसी के द्वारा दोनों की लाशों को साधु यादव की गैराज में देख लिए जाने के कारण ऐसा किया जाना संभव न हो सका और मजबूरी में वहीं पर लाशों की बरामदगी दिखानी पड़ गयी।


काफ़ी समय तक चली जांच के पश्चात यह मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के पास भी गया। सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की प्रक्रिया में एक बार जांचकर्ताओं ने साधु यादव से उनका डीएनए सैंपल भी मांगा ताकि शिल्पी के डीएनए से उसका मिलान किया जा सके परंतु सरकारी सिस्टम के अंदर लालू प्रसाद यादव की ज़बरदस्त पैठ के चलते संबंधित जांचकर्ता अधिकारी साधु यादव का डीएनए सैंपल प्राप्त नहीं कर सके। इसके बाद इस मामले में आगे चली जांच प्रक्रिया में आरोपियों की पहचान भी उजागर नहीं की गई थी और बाद में कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान आरोपियों को क्लीन चिट भी प्रदान कर दी गई। कुछ वर्षों के बाद शिल्पी जैन के भाई ने जब इस केस को फिर से खुलवाने और इसकी जांच करवाने के प्रयास करने शुरू किए तो उसके बाद उनका भी अपहरण हो गया।


कुल-मिलाकर इस पूरे घटनाक्रम का यह परिणाम निकला कि आज तक इस केस के पीछे के असली अपराधियों का नाम आधिकारिक रूप से प्रकाश में नहीं आ पाया और क़ानून की रोशनी में शिल्पी जैन तथा गौतम सिंह की हत्या का रहस्य अनसुलझा ही रह गया। फ़िलहाल, बिहारवासियों से ऐसी आशा की जाती है कि पूर्व में बिहार के ‘जंगलराज’ के दौरान घटी ऐसी हृदय-विदारक एवं मानवता-विरोधी घटनाओं से सबक़ लेते हुए वे भविष्य में कभी भी बिहार एवं राष्ट्र के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे एवं बिहार के राजनैतिक एवं सामाजिक परिदृश्य को अपराधियों, बलात्कारियों, गुंडों, लफंगों एवं आतंकवादियों से सदैव मुक्त रखने के लिए अपने हर-संभव प्रयास करेंगे।


Thursday, January 5, 2023

"Dumraon Raj Pariwar"

Dumraon Raj was a medieval chieftaincy and later a zamindari estate in erstwhile Shahabad district of Bihar, now in Buxar district.


The founders of Dumraon Raj were Ujjainiya Rajputs who traced their origin to the Parmar rulers of Malwa who moved to Western Bihar in the 13th century. The founder of the family was Santana Shahi who settled here while returning from Gaya after offering pind daan.


In 1745 Raja Horil Singh shifted the headquarters of his capital from Naurattan Garh in Bhojpur to Dumraon.


The next great chief of the Dumraon family was Raja Bikramjit Singh, who was given the title of Raja by the emperor Shah Alam in 1771. He was succced by his son Maharaja Bahadur Jai Prakash Singh in 1816.


In 1881 Radha Prasad Singh succeeded to the gaddi of Dumraon Raj and the title of Maharaj Bahadur was conferred on him in 1882  in precedence of the zamindars of Bettiah, Hathuwa and Darbhanga.


He was the head of the Rajputs in Shahbad and did valuable service during the famine of 1873-74. He was subsequently made K.C.I.E ( Knight Commander of the Indian Empire). His only daughter was married to Maharaj Venkat Raman Singh of Rewa.


On the death of Maharaja Radha Prasad Singh in 1894, the Dumraon Raj was placed under the management of Court of Wards but soon Maharani Beni Prasad  Kuari, the widow of late Maharaja, took it back and managed the affairs of the Raj till her death in 1907.


Due to the absence of direct male descendant, the Raj was engaged in a prolonged litigations. In 1911, after obtaining a decree in his favour from Sub-judge's Court in Arrah, Sri Keshav Prasad Singh got the possession of the Dumraon Raj from the Court of Wards.


He was conferred with the title of Maharaja Bahadur and Knighthood. He was also a member of the Executive Council of the Governor of Bihar. Paigambar Baksh Khan, father of the Shehnai Maestro Bharat Ratna Bismillah Khan was the court musician in his court. Bismillah Khan was born in Dumraon in 1916 and spent his early childhood there before moving to Banaras.


After his death in 1933, he was succeeded by Maharaja Rama Ranvijay Prasad Singh, who was further succeeded by his son Maharaja Kamal Singh in 1949.


It was during the regime of Maharaja Kamal Singh that the Zamindari system was abolished by the Bihar Land Reforms Act, 1950 and the possession of the zamindari villages of Dumraon Raj were handed to the Bihar government in 1952. He was also an industrialist and had sponsored a lantern factory and a cold storage at Dumraon.


The last Maharaja of Dumraon Raj in Bihar.

Maharaja Kamal Singh Elected from 1952 to 1962, he was the youngest MP and the last surviving member of the first Lok Sabha. He was known for his welfare works and bond with Atal Bihari Vajpayee. 


Dumraon Raj had sponsored a number of religious and charitable institutions for maintaining beautiful temples, hospitals, schools and educational institutions at Dumraon, Bikramganj and Arrah.

Remnants of this Raj can be traced at various locations including Bihta, Jagdisgpur, Bhojpur, Buxar and Patna.


Source - Bihar District Gazetteers: Shahabad)